Posts

Showing posts from February, 2021

चेतना की प्रचण्ड क्षमता-एक दर्शन , देव-मन्दिर के देवता और परमात्मा

Image
चेतना की प्रचण्ड क्षमता-एक दर्शन  देव-मन्दिर के देवता और परमात्मा ‘‘स्वर्गादि उच्च लोक, अन्तरिक्ष, पृथ्वी, जल आदि की उत्पत्ति हो चुकी तब परमात्मा ने लोकपालों की रचना का विचार किया। इस रचना का विचार आते ही उन्होंने सर्वप्रथम प्रकाश अणु पैदा किये। यह अणु अण्डाकार थे और उसमें पुरुष के लक्षण थे, फिर उस अंड में परमात्मा ने छेद किया जो मुख बना मुख से वाणी, वाणी से अग्नि उत्पन्न हुई। इसके बाद दो छेद किये जो नासिका कहलाये। उससे प्राण की उत्पत्ति हुई, प्राणों से वायु और नेत्रों के छिद्र बने। उनमें सुनने की शक्ति उत्पन्न हुई, श्रोत्रेन्द्रिय के द्वारा दिशायें प्रकटीं, फिर त्वचा उत्पन्न हुई। त्वचा से रोम, रोम से औषधियां, फिर हृदय, हृदय से मन और मन से चन्द्रमा प्रकट हुआ। फिर नाभि बनी, नाभि से अपान देवता उस से मृत्यु देवता प्रकट हुये। फिर उपस्थ, उपस्थ से रेत, रेत से जल की उत्पत्ति हुई।’’ ‘‘इस प्रकार उत्पन्न हुये देवतागण अभी तक अपने सूक्ष्म रूप में थे। परमात्मा ने उनमें भूख और प्यास की अनुभूति भी उत्पन्न कर दी थी किन्तु वे संसार-समुद्र में निराश्रय पड़े थे, उन्हें रहने के लिये योग्य ...

71 सकारात्मक सोंच महत्तवपूर्ण बिंदु positive points

Image
71 सकारात्मक सोंच महत्तवपूर्ण बिंदु positive points 1 : -जीवन में वो ही व्यक्ति असफल होते है , जो सोचते हैं पर करते नहीं । 2 : -भगवान के भरोसे मत बैठिये क्या पता भगवान आपके भरोसे बैठा हो . 3 : -सफलता का आधार है सकारात्मक सोच और निरंतर प्रयास !!! 4 : -अतीत के गुलाम नहीं बल्कि भविष्य के निर्माता बनो ... 5 : -मेहनत इतनी खामोशी से करो की सफलता शोर मचा दे .... 6: -कामयाब होने के लिए अकेले ही आगे बढ़ना पड़ता है , लोग तो पीछे तब आते है जब हम कामयाब होने लगते है , 7 : -छोड़ दो किस्मत की लकीरों पे यकीन करना , जब लोग बदल सकते हैं तो किस्मत क्या चीज है ... 8 : -यदि हार की कोई संभावना ना हो तो जीत का कोई अर्थ नहीं है . 9 : -समस्या का नहीं समाधान का हिस्सा बने ... 10 : -जिनको सपने देखना अच्छा लगता है उन्हें रात छोटी लगती है और जिनको सपने पूरा करना अच्छा लगता है उनको दिन छोटा लगता है ... 11 : - आप अपना भविष्य नहीं बदल सकते पर आप अपनी आदतें बदल सकते है और निशचित रूप से आपकी आदतें आपका भविष्य बदल देगी । 12 : - एक सपने के टूटकर चकनाचूर हो जाने के बाद दूसरा सपना देखने के हौसले को जिंदगी कहते...

👉 Gita Sutra No 3 गीता सूत्र नं० 3

Image
👉 Gita Sutra No 3 गीता सूत्र नं० 3 👉 गीता के ये नौ सूत्र याद रखें, जीवन में कभी असफलता नहीं मिलेगी 🔶 श्लोक- विहाय कामान् य: कर्वान्पुमांश्चरति निस्पृह:। निर्ममो निरहंकार स शांतिमधिगच्छति।। अर्थ- जो मनुष्य सभी इच्छाओं व कामनाओं को त्याग कर ममता रहित और अहंकार रहित होकर अपने कर्तव्यों का पालन करता है, उसे ही शांति प्राप्त होती है। सूत्र – यहां भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि मन में किसी भी प्रकार की इच्छा व कामना को रखकर मनुष्य को शांति प्राप्त नहीं हो सकती। इसलिए शांति प्राप्त करने के लिए सबसे पहले मनुष्य को अपने मन से इच्छाओं को मिटाना होगा। हम जो भी कर्म करते हैं, उसके साथ अपने अपेक्षित परिणाम को साथ में चिपका देते हैं। अपनी पसंद के परिणाम की इच्छा हमें कमजोर कर देती है। वो ना हो तो व्यक्ति का मन और ज्यादा अशांत हो जाता है। मन से ममता अथवा अहंकार आदि भावों को मिटाकर तन्मयता से अपने कर्तव्यों का पालन करना होगा। तभी मनुष्य को शांति प्राप्त होगी।

👉 Gita Sutra No 5 गीता सूत्र नं० 5

Image
👉 Gita Sutra No 5 गीता सूत्र नं० 5 👉 गीता के ये नौ सूत्र याद रखें, जीवन में कभी असफलता नहीं मिलेगी श्लोक- नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मण:। शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्धयेदकर्मण:।। अर्थ- तू शास्त्रों में बताए गए अपने धर्म के अनुसार कर्म कर, क्योंकि कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है तथा कर्म न करने से तेरा शरीर निर्वाह भी नहीं सिद्ध होगा। सूत्र- श्रीकृष्ण अर्जुन को माध्यम से मनुष्यों को समझाते हैं कि हर मनुष्य को अपने-अपने धर्म के अनुसार कर्म करना चाहिए जैसे- विद्यार्थी का धर्म है विद्या प्राप्त करना, सैनिक का कर्म है देश की रक्षा करना। जो लोग कर्म नहीं करते, उनसे श्रेष्ठ वे लोग होते हैं जो अपने धर्म के अनुसार कर्म करते हैं, क्योंकि बिना कर्म किए तो शरीर का पालन-पोषण करना भी संभव नहीं है। जिस व्यक्ति का जो कर्तव्य तय है, उसे वो पूरा करना ही चाहिए।

👉 गीता के ये नौ सूत्र याद रखें, जीवन में कभी असफलता नहीं मिलेगी

Image
श्लोक- नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना। न चाभावयत: शांतिरशांतस्य कुत: सुखम्।। अर्थ- योगरहित पुरुष में निश्चय करने की बुद्धि नहीं होती और उसके मन में भावना भी नहीं होती। ऐसे भावनारहित पुरुष को शांति नहीं मिलती और जिसे शांति नहीं, उसे सुख कहां से मिलेगा। सूत्र – हर मनुष्य की इच्छा होती है कि उसे सुख प्राप्त हो, इसके लिए वह भटकता रहता है, लेकिन सुख का मूल तो उसके अपने मन में स्थित होता है। जिस मनुष्य का मन इंद्रियों यानी धन, वासना, आलस्य आदि में लिप्त है, उसके मन में भावना ( आत्मज्ञान) नहीं होती। और जिस मनुष्य के मन में भावना नहीं होती, उसे किसी भी प्रकार से शांति नहीं मिलती और जिसके मन में शांति न हो, उसे सुख कहां से प्राप्त होगा। अत: सुख प्राप्त करने के लिए मन पर नियंत्रण होना बहुत आवश्यक है।