चेतना की प्रचण्ड क्षमता-एक दर्शन , देव-मन्दिर के देवता और परमात्मा

चेतना की प्रचण्ड क्षमता-एक दर्शन देव-मन्दिर के देवता और परमात्मा ‘‘स्वर्गादि उच्च लोक, अन्तरिक्ष, पृथ्वी, जल आदि की उत्पत्ति हो चुकी तब परमात्मा ने लोकपालों की रचना का विचार किया। इस रचना का विचार आते ही उन्होंने सर्वप्रथम प्रकाश अणु पैदा किये। यह अणु अण्डाकार थे और उसमें पुरुष के लक्षण थे, फिर उस अंड में परमात्मा ने छेद किया जो मुख बना मुख से वाणी, वाणी से अग्नि उत्पन्न हुई। इसके बाद दो छेद किये जो नासिका कहलाये। उससे प्राण की उत्पत्ति हुई, प्राणों से वायु और नेत्रों के छिद्र बने। उनमें सुनने की शक्ति उत्पन्न हुई, श्रोत्रेन्द्रिय के द्वारा दिशायें प्रकटीं, फिर त्वचा उत्पन्न हुई। त्वचा से रोम, रोम से औषधियां, फिर हृदय, हृदय से मन और मन से चन्द्रमा प्रकट हुआ। फिर नाभि बनी, नाभि से अपान देवता उस से मृत्यु देवता प्रकट हुये। फिर उपस्थ, उपस्थ से रेत, रेत से जल की उत्पत्ति हुई।’’ ‘‘इस प्रकार उत्पन्न हुये देवतागण अभी तक अपने सूक्ष्म रूप में थे। परमात्मा ने उनमें भूख और प्यास की अनुभूति भी उत्पन्न कर दी थी किन्तु वे संसार-समुद्र में निराश्रय पड़े थे, उन्हें रहने के लिये योग्य ...